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Monday 16 December 2013

माटी का दिया

सांध्य रवि ने कहा मेरा काम लेगा कौन

रह गया सुनकर निरुत्तर जगत सारा मौन.

एक माटी के दिये ने कहा विनम्रता के साथ

जितना भी बन पड़ेगा मैं करूँगा नाथ...


- गीतांजली से साभार...

Monday 9 December 2013

सतत एवम व्यापक मूल्यांकन- एक कविता

जो दौड़ लगाकर बैठ गये, वो राहों में रह जाते हैं,
जो चलते रहते सतत यहाँ, निश्चय ही मंजिल पाते हैं।
बच्चों की बहुमुखी प्रतिभा का, बेहतर मापक होता है,
वहीं दूसरो शब्दों में, मूल्यांकन व्यापक होता है।

बच्चों ने कितना सीखा, ये संकेतक बतलाते हैं,
पाठयक्रमीय लक्ष्यों को हासिल, करने के ये नाते हैं।
अब तक मैंने इनता सीखा, जाना या फिर पहचाना,
इसकी सम्यक समझ न जिनको, राहों में रह जाते है।

बहुत जरूरी हम शिक्षक हित, संकेतक का ज्ञान है,
अब प्रकरण पर नहीं, प्रक्रिया पर ही देना ध्यान है।
कितनी हुई प्रगति अब तक, होती इससे पहचान है,
मेरा तो मन्तव्य यहीं, ये सी0सी0ई0 की जान है।

बच्चों की गतिविधियों का जब बेहतर अवलोकन होगा,
तभी आंकलन बिन्दु मिलेंगे, और उनका अंकन होगा।
शिक्षक की डायरी हो या फिर छात्रों की हो प्रोफाइल,
समझ प्रपत्रों पर बनते ही, सम्यक अभिलेखन होगा।

हर बच्चा विशिष्ट है खुद में, इसको हमे समझाना होगा,
है उसकी क्या खास जरूरत, इस पर चिंतन करना होगा।
समय कहे कार्यान्वित हो, व्यक्तिगत योजना शिक्षा की,
मूल्यांकन विधियाँ हों विशिष्ट, ना डर हो कभी परीक्षा की।

हो अगर सफलता की चाहत, मन बचन कर्म से एक बनें,
सी0सी0ई0 सेल कुछ कार्य करें ऐसा, कि हम सब नेक बनें।
जो कर्मठ और उत्साही हों, पा सकें समर्थन नियमित गर,
तो गारण्टी इस बात की है, मंजिल की राह अनेक बने।

राह-ए-मंजिल इफ व बट होता नहीं भाई,
कोई भी कार्य फटाफट, होता नहीं भाई।
खोएं न धैर्य कभी भी, चलते रहें सतत
सफलता का कोई शार्ट कट, होता नहीं भाई।

जिन्दगी भोर है, सूरज सा निकलते रहिए,
नित नवाचार से, खुद को भी बदलते रहिए।
अगर रूक जायेंगे, मंजिल न पा सकेंगे कभी,
धीरे-धीरे ही मगर, अनवरत चलते रहिए।

Composed by : विन्ध्येश्वरी प्रसाद बिन्ध्य
ए0बी0आर0सी0 पिण्डरा
वाराणसी।
Shard by : मनीष कुमार सिंह, स0अ0
प्रा0वि0- चितर्इपुर, पिण्डरा
वाराणसी।

Tuesday 3 December 2013

एक अनुभव - सी.सी.र्इ. क्यों करें?

मुझे अपने जनपद वाराणसी में सी. सी. र्इ. प्रशिक्षण के अनुश्रवण का अवसर प्राप्त हुआ। प्रारम्भ में एक विकास क्षेत्र में गया तो वहा मास्टर ट्रेनर महोदय सें एक प्रतिभागी शिक्षक पूछ रहे थे कि आखिर हम सी.सी. र्इ. क्यों करें, खासकर रिकार्डिंग क्यों करें जब हमें अपने प्रत्येक बच्चे के बारे में पता होता ही है। ट्रेनर महोदय अपने तर्को द्वारा समझाने का प्रयास कर रहे थे, परन्तु  प्रतिभागी शिक्षक संतुष्ट नहीं थे। वे लगातार प्रश्न कर रहे थे, मानो वे तय करके आये थे कि आज तो प्रश्नों की बौछार करनी हो। कुछ समय पश्चात मैं भी प्रतिभागियों को समझाने का प्रयास किया वे शान्त तो हो गये, परन्तु उनका हाव-भाव कह रहा था कि वे  यह मानने के लिये तैयार नहीं थे कि बच्चों के साथ-साथ वास्तव में उनकी शिक्षण प्रक्रिया का भी मूल्यांकन होता है।

मैं इस घटना की चर्चा इसलिये कर रहा हू कि पाच-छ़: दिनों बाद हम लोग अनुश्रवण करने के लियें एक अन्य विकास क्षेत्र में गये साथ में एस. एस.ए. लखनऊ से सलाहकार महेन्द्र जी भी थे। उस विकास क्षेत्र में भी एक शिक्षक ने चर्चा के उपरांत यही प्रश्न किया कि हम सी.सी.र्इ. क्यों करें ? यहां भी आशय मुख्य रूप से रिकार्डिंग करने के संबंध में ही था। महेन्द्र जी ने इस प्रश्न का उत्तर स्वयं न देकर प्रतिभागियों से ही पूछा कि आप में से कोर्इ बतायें क्यों करें ?

प्रतिभागियों में से ही एक मैडम जी ने इसका उत्तर देते हुए कहा था कि सर जब हम अपनी योजना या फिर बच्चों की प्रगति लिखते हैं तो हमें गंभीरता के साथ सोचना पड़ता है। इससे हमारी प्लानिंग और बढि़या होती है। उसी प्रकार कक्षा की समापित के बाद पुन जब हमें अपनी टिप्पणी दर्ज करनी होती है तो हम एक बार फिर से सोचने के लिए बाध्य हो जाते हैं। अगर हम न लिखें तो निशिचत रूप से हम इस प्रकार से सोचकर काम नहीं करते हैं। इस प्रकार रिकार्डिंग करने से शिक्षक अपने काम को गंभीरता से और बेहतर ढंग से करने लगता है। एक बात और लिखने से यह अभिलेख के रूप में हमारे पास होता है जिसका उपयोग हम भविष्य में कर सकते हैं अन्यथा न लिखने की दशा में हम तो भूल जाएंगे।

प्रतिभागी के इस उत्तर ने हम लोगों को तो काफी प्रभावित किया ही, प्रश्न कर रहे प्रतिभागियों को भी संतुष्ट किया। इस प्रश्न का उत्तर महेन्द्र जी या फिर हम दे सकते थे, परन्तु उन्होंने इसका उत्तर प्रतिभागियों से ही पूछा, और जैसे ही उस मैडम ने सकारात्मक उत्तर दिया वैसे ही प्रश्न पूछने वाले अघ्यापक महोदय तथा उनके कुछ साथी ,जो केवल प्रश्न पूछना अपना एकाधिकार समझते है, बगले झांकने लगें।

वास्तव में बहुत से अध्यापक-अध्यापिका हैं, जो बच्चों के साथ,बच्चों के अनुसार कार्य करने तथा उस कार्य का आत्म- मूल्यांकन करनें की सकारात्मक सोच रखते हैं। यदि हम सभी अध्यापक इस तरह का सकारात्मक सोंच रखें तब शायद यह प्रश्न ही नही आयेंगा कि हम सी.सी.र्इ.क्यों करें । एक और बात जो मैं यहां कहना चाहूंगा कि अच्छे शिक्षकों को सी.सी.ई. करना नहीं पड़ता है, उनसे यह हो ही जाता है क्योंकि उन्हें यह पता है कि इसके बिना सार्थक शिक्षण हो ही नहीं सकता। यह उनकी शिक्षण पद्धति का अभिन्न हिस्सा है। और यह देखकर अच्छा लगता है कि ऐसे शिक्षक इस बात से सहमत होते हैं कि रिकार्डिंग करने से उनकी इस प्रक्रिया को बेहतर बनाने में मदद मिलेगी।
                                                          
            - डा0 कुवर भगत सिंह, वाराणसी
(drkunwarbsingh@gmail.com)

Monday 2 December 2013

मूल्यांकन / आकलन / मापन / परीक्षण में अन्तर


सतत एवं व्यापक मूल्यांकन की संकल्पना के पूर्व शैक्षिक संन्दर्भ में मूल्यांकन के अर्थ पर विचार कर लेना समीचीन होगा। मूल्यांकन के स्वरूप को स्पष्ट रूप में समझने के लिए मापन से उसका अर्थ भेद समझ लेना आवश्यक है।
           
अन्तर के बिन्दु
आकलन (Assessment)
मूल्यांकन (Evaluation)
मापन (Measurement)
परीक्षा / परीक्षण (Examination/ Test)
अर्थ

आकलन एक संवादात्मक तथा रचनात्मक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा शिक्षक को यह ज्ञात होता है कि विधार्थी का उचित अधिगम हो रहा है अथवा नहीं।
मूल्यांकन एक योगात्मक प्रक्रिया है जिसके द्वारा किसी पूर्व निर्मित शैक्षिक कार्यक्रम अथवा पाठयक्रम की समाप्ति पर छात्रों की शैक्षिक उपलबिध ज्ञात की जाती है।
मापन आकलन मूल्यांकन की एक तकनीक है जिसके द्वारा किसी व्यक्ति या पदार्थ में निहित विशेषताओं का आंकिक वर्णन किया जाता है।
परीक्षा तथा परीक्षण आकलन/मूल्यांकन का एक उपकरण/पद्धति है जिसके द्वारा परीक्षा/परीक्षण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा मुख्य रूप से पाठयक्रम के ज्ञानात्मक अनुभव कौशल की जांच की जाती है।
उददेश्य

इसका उददेश्य निदानात्मक होता  है। शैक्षिक संदर्भ में आकलन का उददेश्य शिक्षण- अधिगम कार्यक्रम में सुधार करना, छात्रों व अध्यापक को पृष्ठपोषण प्रदान करना तथा छात्रों की अधिगम संबंधी कठिनाइयों को ज्ञात करना होता है।
इसका उददेश्य मूल्य निर्णयन करना होता है। शैक्षिक संदर्भ में मूल्यांकन का उददेश्य निर्धारित पाठयक्रम की समाप्ति पर छात्रों की उपलब्धि को ग्रेड अथवा अंक के माध्यम से प्रदर्शित करना है।
मापन आकलन तथा मूल्यांकन की एक तकनीक है।
परीक्षा द्वारा मुख्य रूप से पाठयक्रम के ज्ञानात्मक अनुभव कौशल की जांच की जाती है। परीक्षा तथा परीक्षण मूल्यांकन का एक उपकरण/पद्धति है। छात्र के ज्ञान, क्षमता, कौशल, रूचि आदि की जांच की जाती है।
अवधि

यह सम्पूर्ण अकादमिक अवधि के दौरान निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है।
यह पाठयक्रम की समाप्ति पर होने वाली प्रक्रिया है।
यह कभी भी या कभी-कभी चलने वाली प्रणाली है।
यह एक निश्चित समय के अन्तराल पर अपनाया जाने वाला उपकरण है जैसे कि मासिक, अर्धवार्षिक एवं वार्षिक आदि।
शिक्षण-शास्त्रीय

शिक्षण शास्त्र का हिस्सा है, जो पढ़ने-पढाने के साथ-साथ चलता है।
शिक्षण शास्त्र का हिस्सा है, जो पढ़ने-पढाने के अंत में  उपलब्धियों के वर्गीकरण के लिए किया जाता रहा है।
मापन मुख्य तौर पर व्यकितत्व के विभिन्न पहलुओं जैसे- मानसिक क्षमता, रूझान इत्यादि के लिए किया जाता रहा है।
पारंपरिक रूप से यह शिक्षण शास्त्र में स्मृति आधारित ज्ञान के लिए होता है तथा शिक्षणेत्तर गतिवधियों के लिए भी होता है।