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Tuesday, 3 December 2013

एक अनुभव - सी.सी.र्इ. क्यों करें?

मुझे अपने जनपद वाराणसी में सी. सी. र्इ. प्रशिक्षण के अनुश्रवण का अवसर प्राप्त हुआ। प्रारम्भ में एक विकास क्षेत्र में गया तो वहा मास्टर ट्रेनर महोदय सें एक प्रतिभागी शिक्षक पूछ रहे थे कि आखिर हम सी.सी. र्इ. क्यों करें, खासकर रिकार्डिंग क्यों करें जब हमें अपने प्रत्येक बच्चे के बारे में पता होता ही है। ट्रेनर महोदय अपने तर्को द्वारा समझाने का प्रयास कर रहे थे, परन्तु  प्रतिभागी शिक्षक संतुष्ट नहीं थे। वे लगातार प्रश्न कर रहे थे, मानो वे तय करके आये थे कि आज तो प्रश्नों की बौछार करनी हो। कुछ समय पश्चात मैं भी प्रतिभागियों को समझाने का प्रयास किया वे शान्त तो हो गये, परन्तु उनका हाव-भाव कह रहा था कि वे  यह मानने के लिये तैयार नहीं थे कि बच्चों के साथ-साथ वास्तव में उनकी शिक्षण प्रक्रिया का भी मूल्यांकन होता है।

मैं इस घटना की चर्चा इसलिये कर रहा हू कि पाच-छ़: दिनों बाद हम लोग अनुश्रवण करने के लियें एक अन्य विकास क्षेत्र में गये साथ में एस. एस.ए. लखनऊ से सलाहकार महेन्द्र जी भी थे। उस विकास क्षेत्र में भी एक शिक्षक ने चर्चा के उपरांत यही प्रश्न किया कि हम सी.सी.र्इ. क्यों करें ? यहां भी आशय मुख्य रूप से रिकार्डिंग करने के संबंध में ही था। महेन्द्र जी ने इस प्रश्न का उत्तर स्वयं न देकर प्रतिभागियों से ही पूछा कि आप में से कोर्इ बतायें क्यों करें ?

प्रतिभागियों में से ही एक मैडम जी ने इसका उत्तर देते हुए कहा था कि सर जब हम अपनी योजना या फिर बच्चों की प्रगति लिखते हैं तो हमें गंभीरता के साथ सोचना पड़ता है। इससे हमारी प्लानिंग और बढि़या होती है। उसी प्रकार कक्षा की समापित के बाद पुन जब हमें अपनी टिप्पणी दर्ज करनी होती है तो हम एक बार फिर से सोचने के लिए बाध्य हो जाते हैं। अगर हम न लिखें तो निशिचत रूप से हम इस प्रकार से सोचकर काम नहीं करते हैं। इस प्रकार रिकार्डिंग करने से शिक्षक अपने काम को गंभीरता से और बेहतर ढंग से करने लगता है। एक बात और लिखने से यह अभिलेख के रूप में हमारे पास होता है जिसका उपयोग हम भविष्य में कर सकते हैं अन्यथा न लिखने की दशा में हम तो भूल जाएंगे।

प्रतिभागी के इस उत्तर ने हम लोगों को तो काफी प्रभावित किया ही, प्रश्न कर रहे प्रतिभागियों को भी संतुष्ट किया। इस प्रश्न का उत्तर महेन्द्र जी या फिर हम दे सकते थे, परन्तु उन्होंने इसका उत्तर प्रतिभागियों से ही पूछा, और जैसे ही उस मैडम ने सकारात्मक उत्तर दिया वैसे ही प्रश्न पूछने वाले अघ्यापक महोदय तथा उनके कुछ साथी ,जो केवल प्रश्न पूछना अपना एकाधिकार समझते है, बगले झांकने लगें।

वास्तव में बहुत से अध्यापक-अध्यापिका हैं, जो बच्चों के साथ,बच्चों के अनुसार कार्य करने तथा उस कार्य का आत्म- मूल्यांकन करनें की सकारात्मक सोच रखते हैं। यदि हम सभी अध्यापक इस तरह का सकारात्मक सोंच रखें तब शायद यह प्रश्न ही नही आयेंगा कि हम सी.सी.र्इ.क्यों करें । एक और बात जो मैं यहां कहना चाहूंगा कि अच्छे शिक्षकों को सी.सी.ई. करना नहीं पड़ता है, उनसे यह हो ही जाता है क्योंकि उन्हें यह पता है कि इसके बिना सार्थक शिक्षण हो ही नहीं सकता। यह उनकी शिक्षण पद्धति का अभिन्न हिस्सा है। और यह देखकर अच्छा लगता है कि ऐसे शिक्षक इस बात से सहमत होते हैं कि रिकार्डिंग करने से उनकी इस प्रक्रिया को बेहतर बनाने में मदद मिलेगी।
                                                          
            - डा0 कुवर भगत सिंह, वाराणसी
(drkunwarbsingh@gmail.com)

2 comments:

  1. मुझे अपने जनपद वाराणसी में सी. सी. र्इ. प्रशिक्षण के अनुश्रवण का अवसर प्राप्त हुआ। प्रारम्भ में एक विकास क्षेत्र में गया तो वहा मास्टर ट्रेनर महोदय सें एक प्रतिभागी शिक्षक पूछ रहे थे कि आखिर हम सी.सी. र्इ. क्यों करें, खासकर रिकार्डिंग क्यों करें जब हमें अपने प्रत्येक बच्चे के बारे में पता होता ही है। ट्रेनर महोदय अपने तर्को द्वारा समझाने का प्रयास कर रहे थे, परन्तु प्रतिभागी शिक्षक संतुष्ट नहीं थे। वे लगातार प्रश्न कर रहे थे, मानो वे तय करके आये थे कि आज तो प्रश्नों की बौछार करनी हो। कुछ समय पश्चात मैं भी प्रतिभागियों को समझाने का प्रयास किया वे शान्त तो हो गये, परन्तु उनका हाव-भाव कह रहा था कि वे यह मानने के लिये तैयार नहीं थे कि बच्चों के साथ-साथ वास्तव में उनकी शिक्षण प्रक्रिया का भी मूल्यांकन होता है।

    मैं इस घटना की चर्चा इसलिये कर रहा हू कि पाच-छ़: दिनों बाद हम लोग अनुश्रवण करने के लियें एक अन्य विकास क्षेत्र में गये साथ में एस. एस.ए. लखनऊ से सलाहकार महेन्द्र जी भी थे। उस विकास क्षेत्र में भी एक शिक्षक ने चर्चा के उपरांत यही प्रश्न किया कि हम सी.सी.र्इ. क्यों करें ? यहां भी आशय मुख्य रूप से रिकार्डिंग करने के संबंध में ही था। महेन्द्र जी ने इस प्रश्न का उत्तर स्वयं न देकर प्रतिभागियों से ही पूछा कि आप में से कोर्इ बतायें क्यों करें ?

    प्रतिभागियों में से ही एक मैडम जी ने इसका उत्तर देते हुए कहा था कि सर जब हम अपनी योजना या फिर बच्चों की प्रगति लिखते हैं तो हमें गंभीरता के साथ सोचना पड़ता है। इससे हमारी प्लानिंग और बढि़या होती है। उसी प्रकार कक्षा की समापित के बाद पुन जब हमें अपनी टिप्पणी दर्ज करनी होती है तो हम एक बार फिर से सोचने के लिए बाध्य हो जाते हैं। अगर हम न लिखें तो निशिचत रूप से हम इस प्रकार से सोचकर काम नहीं करते हैं। इस प्रकार रिकार्डिंग करने से शिक्षक अपने काम को गंभीरता से और बेहतर ढंग से करने लगता है। एक बात और लिखने से यह अभिलेख के रूप में हमारे पास होता है जिसका उपयोग हम भविष्य में कर सकते हैं अन्यथा न लिखने की दशा में हम तो भूल जाएंगे।

    प्रतिभागी के इस उत्तर ने हम लोगों को तो काफी प्रभावित किया ही, प्रश्न कर रहे प्रतिभागियों को भी संतुष्ट किया। इस प्रश्न का उत्तर महेन्द्र जी या फिर हम दे सकते थे, परन्तु उन्होंने इसका उत्तर प्रतिभागियों से ही पूछा, और जैसे ही उस मैडम ने सकारात्मक उत्तर दिया वैसे ही प्रश्न पूछने वाले अघ्यापक महोदय तथा उनके कुछ साथी ,जो केवल प्रश्न पूछना अपना एकाधिकार समझते है, बगले झांकने लगें।

    वास्तव में बहुत से अध्यापक-अध्यापिका हैं, जो बच्चों के साथ,बच्चों के अनुसार कार्य करने तथा उस कार्य का आत्म- मूल्यांकन करनें की सकारात्मक सोच रखते हैं। यदि हम सभी अध्यापक इस तरह का सकारात्मक सोंच रखें तब शायद यह प्रश्न ही नही आयेंगा कि हम सी.सी.र्इ.क्यों करें । एक और बात जो मैं यहां कहना चाहूंगा कि अच्छे शिक्षकों को सी.सी.ई. करना नहीं पड़ता है, उनसे यह हो ही जाता है क्योंकि उन्हें यह पता है कि इसके बिना सार्थक शिक्षण हो ही नहीं सकता। यह उनकी शिक्षण पद्धति का अभिन्न हिस्सा है। और यह देखकर अच्छा लगता है कि ऐसे शिक्षक इस

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