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Monday, 9 December 2013

सतत एवम व्यापक मूल्यांकन- एक कविता

जो दौड़ लगाकर बैठ गये, वो राहों में रह जाते हैं,
जो चलते रहते सतत यहाँ, निश्चय ही मंजिल पाते हैं।
बच्चों की बहुमुखी प्रतिभा का, बेहतर मापक होता है,
वहीं दूसरो शब्दों में, मूल्यांकन व्यापक होता है।

बच्चों ने कितना सीखा, ये संकेतक बतलाते हैं,
पाठयक्रमीय लक्ष्यों को हासिल, करने के ये नाते हैं।
अब तक मैंने इनता सीखा, जाना या फिर पहचाना,
इसकी सम्यक समझ न जिनको, राहों में रह जाते है।

बहुत जरूरी हम शिक्षक हित, संकेतक का ज्ञान है,
अब प्रकरण पर नहीं, प्रक्रिया पर ही देना ध्यान है।
कितनी हुई प्रगति अब तक, होती इससे पहचान है,
मेरा तो मन्तव्य यहीं, ये सी0सी0ई0 की जान है।

बच्चों की गतिविधियों का जब बेहतर अवलोकन होगा,
तभी आंकलन बिन्दु मिलेंगे, और उनका अंकन होगा।
शिक्षक की डायरी हो या फिर छात्रों की हो प्रोफाइल,
समझ प्रपत्रों पर बनते ही, सम्यक अभिलेखन होगा।

हर बच्चा विशिष्ट है खुद में, इसको हमे समझाना होगा,
है उसकी क्या खास जरूरत, इस पर चिंतन करना होगा।
समय कहे कार्यान्वित हो, व्यक्तिगत योजना शिक्षा की,
मूल्यांकन विधियाँ हों विशिष्ट, ना डर हो कभी परीक्षा की।

हो अगर सफलता की चाहत, मन बचन कर्म से एक बनें,
सी0सी0ई0 सेल कुछ कार्य करें ऐसा, कि हम सब नेक बनें।
जो कर्मठ और उत्साही हों, पा सकें समर्थन नियमित गर,
तो गारण्टी इस बात की है, मंजिल की राह अनेक बने।

राह-ए-मंजिल इफ व बट होता नहीं भाई,
कोई भी कार्य फटाफट, होता नहीं भाई।
खोएं न धैर्य कभी भी, चलते रहें सतत
सफलता का कोई शार्ट कट, होता नहीं भाई।

जिन्दगी भोर है, सूरज सा निकलते रहिए,
नित नवाचार से, खुद को भी बदलते रहिए।
अगर रूक जायेंगे, मंजिल न पा सकेंगे कभी,
धीरे-धीरे ही मगर, अनवरत चलते रहिए।

Composed by : विन्ध्येश्वरी प्रसाद बिन्ध्य
ए0बी0आर0सी0 पिण्डरा
वाराणसी।
Shard by : मनीष कुमार सिंह, स0अ0
प्रा0वि0- चितर्इपुर, पिण्डरा
वाराणसी।

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