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Monday 16 December 2013

माटी का दिया

सांध्य रवि ने कहा मेरा काम लेगा कौन

रह गया सुनकर निरुत्तर जगत सारा मौन.

एक माटी के दिये ने कहा विनम्रता के साथ

जितना भी बन पड़ेगा मैं करूँगा नाथ...


- गीतांजली से साभार...

Monday 9 December 2013

सतत एवम व्यापक मूल्यांकन- एक कविता

जो दौड़ लगाकर बैठ गये, वो राहों में रह जाते हैं,
जो चलते रहते सतत यहाँ, निश्चय ही मंजिल पाते हैं।
बच्चों की बहुमुखी प्रतिभा का, बेहतर मापक होता है,
वहीं दूसरो शब्दों में, मूल्यांकन व्यापक होता है।

बच्चों ने कितना सीखा, ये संकेतक बतलाते हैं,
पाठयक्रमीय लक्ष्यों को हासिल, करने के ये नाते हैं।
अब तक मैंने इनता सीखा, जाना या फिर पहचाना,
इसकी सम्यक समझ न जिनको, राहों में रह जाते है।

बहुत जरूरी हम शिक्षक हित, संकेतक का ज्ञान है,
अब प्रकरण पर नहीं, प्रक्रिया पर ही देना ध्यान है।
कितनी हुई प्रगति अब तक, होती इससे पहचान है,
मेरा तो मन्तव्य यहीं, ये सी0सी0ई0 की जान है।

बच्चों की गतिविधियों का जब बेहतर अवलोकन होगा,
तभी आंकलन बिन्दु मिलेंगे, और उनका अंकन होगा।
शिक्षक की डायरी हो या फिर छात्रों की हो प्रोफाइल,
समझ प्रपत्रों पर बनते ही, सम्यक अभिलेखन होगा।

हर बच्चा विशिष्ट है खुद में, इसको हमे समझाना होगा,
है उसकी क्या खास जरूरत, इस पर चिंतन करना होगा।
समय कहे कार्यान्वित हो, व्यक्तिगत योजना शिक्षा की,
मूल्यांकन विधियाँ हों विशिष्ट, ना डर हो कभी परीक्षा की।

हो अगर सफलता की चाहत, मन बचन कर्म से एक बनें,
सी0सी0ई0 सेल कुछ कार्य करें ऐसा, कि हम सब नेक बनें।
जो कर्मठ और उत्साही हों, पा सकें समर्थन नियमित गर,
तो गारण्टी इस बात की है, मंजिल की राह अनेक बने।

राह-ए-मंजिल इफ व बट होता नहीं भाई,
कोई भी कार्य फटाफट, होता नहीं भाई।
खोएं न धैर्य कभी भी, चलते रहें सतत
सफलता का कोई शार्ट कट, होता नहीं भाई।

जिन्दगी भोर है, सूरज सा निकलते रहिए,
नित नवाचार से, खुद को भी बदलते रहिए।
अगर रूक जायेंगे, मंजिल न पा सकेंगे कभी,
धीरे-धीरे ही मगर, अनवरत चलते रहिए।

Composed by : विन्ध्येश्वरी प्रसाद बिन्ध्य
ए0बी0आर0सी0 पिण्डरा
वाराणसी।
Shard by : मनीष कुमार सिंह, स0अ0
प्रा0वि0- चितर्इपुर, पिण्डरा
वाराणसी।

Tuesday 3 December 2013

एक अनुभव - सी.सी.र्इ. क्यों करें?

मुझे अपने जनपद वाराणसी में सी. सी. र्इ. प्रशिक्षण के अनुश्रवण का अवसर प्राप्त हुआ। प्रारम्भ में एक विकास क्षेत्र में गया तो वहा मास्टर ट्रेनर महोदय सें एक प्रतिभागी शिक्षक पूछ रहे थे कि आखिर हम सी.सी. र्इ. क्यों करें, खासकर रिकार्डिंग क्यों करें जब हमें अपने प्रत्येक बच्चे के बारे में पता होता ही है। ट्रेनर महोदय अपने तर्को द्वारा समझाने का प्रयास कर रहे थे, परन्तु  प्रतिभागी शिक्षक संतुष्ट नहीं थे। वे लगातार प्रश्न कर रहे थे, मानो वे तय करके आये थे कि आज तो प्रश्नों की बौछार करनी हो। कुछ समय पश्चात मैं भी प्रतिभागियों को समझाने का प्रयास किया वे शान्त तो हो गये, परन्तु उनका हाव-भाव कह रहा था कि वे  यह मानने के लिये तैयार नहीं थे कि बच्चों के साथ-साथ वास्तव में उनकी शिक्षण प्रक्रिया का भी मूल्यांकन होता है।

मैं इस घटना की चर्चा इसलिये कर रहा हू कि पाच-छ़: दिनों बाद हम लोग अनुश्रवण करने के लियें एक अन्य विकास क्षेत्र में गये साथ में एस. एस.ए. लखनऊ से सलाहकार महेन्द्र जी भी थे। उस विकास क्षेत्र में भी एक शिक्षक ने चर्चा के उपरांत यही प्रश्न किया कि हम सी.सी.र्इ. क्यों करें ? यहां भी आशय मुख्य रूप से रिकार्डिंग करने के संबंध में ही था। महेन्द्र जी ने इस प्रश्न का उत्तर स्वयं न देकर प्रतिभागियों से ही पूछा कि आप में से कोर्इ बतायें क्यों करें ?

प्रतिभागियों में से ही एक मैडम जी ने इसका उत्तर देते हुए कहा था कि सर जब हम अपनी योजना या फिर बच्चों की प्रगति लिखते हैं तो हमें गंभीरता के साथ सोचना पड़ता है। इससे हमारी प्लानिंग और बढि़या होती है। उसी प्रकार कक्षा की समापित के बाद पुन जब हमें अपनी टिप्पणी दर्ज करनी होती है तो हम एक बार फिर से सोचने के लिए बाध्य हो जाते हैं। अगर हम न लिखें तो निशिचत रूप से हम इस प्रकार से सोचकर काम नहीं करते हैं। इस प्रकार रिकार्डिंग करने से शिक्षक अपने काम को गंभीरता से और बेहतर ढंग से करने लगता है। एक बात और लिखने से यह अभिलेख के रूप में हमारे पास होता है जिसका उपयोग हम भविष्य में कर सकते हैं अन्यथा न लिखने की दशा में हम तो भूल जाएंगे।

प्रतिभागी के इस उत्तर ने हम लोगों को तो काफी प्रभावित किया ही, प्रश्न कर रहे प्रतिभागियों को भी संतुष्ट किया। इस प्रश्न का उत्तर महेन्द्र जी या फिर हम दे सकते थे, परन्तु उन्होंने इसका उत्तर प्रतिभागियों से ही पूछा, और जैसे ही उस मैडम ने सकारात्मक उत्तर दिया वैसे ही प्रश्न पूछने वाले अघ्यापक महोदय तथा उनके कुछ साथी ,जो केवल प्रश्न पूछना अपना एकाधिकार समझते है, बगले झांकने लगें।

वास्तव में बहुत से अध्यापक-अध्यापिका हैं, जो बच्चों के साथ,बच्चों के अनुसार कार्य करने तथा उस कार्य का आत्म- मूल्यांकन करनें की सकारात्मक सोच रखते हैं। यदि हम सभी अध्यापक इस तरह का सकारात्मक सोंच रखें तब शायद यह प्रश्न ही नही आयेंगा कि हम सी.सी.र्इ.क्यों करें । एक और बात जो मैं यहां कहना चाहूंगा कि अच्छे शिक्षकों को सी.सी.ई. करना नहीं पड़ता है, उनसे यह हो ही जाता है क्योंकि उन्हें यह पता है कि इसके बिना सार्थक शिक्षण हो ही नहीं सकता। यह उनकी शिक्षण पद्धति का अभिन्न हिस्सा है। और यह देखकर अच्छा लगता है कि ऐसे शिक्षक इस बात से सहमत होते हैं कि रिकार्डिंग करने से उनकी इस प्रक्रिया को बेहतर बनाने में मदद मिलेगी।
                                                          
            - डा0 कुवर भगत सिंह, वाराणसी
(drkunwarbsingh@gmail.com)

Monday 2 December 2013

मूल्यांकन / आकलन / मापन / परीक्षण में अन्तर


सतत एवं व्यापक मूल्यांकन की संकल्पना के पूर्व शैक्षिक संन्दर्भ में मूल्यांकन के अर्थ पर विचार कर लेना समीचीन होगा। मूल्यांकन के स्वरूप को स्पष्ट रूप में समझने के लिए मापन से उसका अर्थ भेद समझ लेना आवश्यक है।
           
अन्तर के बिन्दु
आकलन (Assessment)
मूल्यांकन (Evaluation)
मापन (Measurement)
परीक्षा / परीक्षण (Examination/ Test)
अर्थ

आकलन एक संवादात्मक तथा रचनात्मक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा शिक्षक को यह ज्ञात होता है कि विधार्थी का उचित अधिगम हो रहा है अथवा नहीं।
मूल्यांकन एक योगात्मक प्रक्रिया है जिसके द्वारा किसी पूर्व निर्मित शैक्षिक कार्यक्रम अथवा पाठयक्रम की समाप्ति पर छात्रों की शैक्षिक उपलबिध ज्ञात की जाती है।
मापन आकलन मूल्यांकन की एक तकनीक है जिसके द्वारा किसी व्यक्ति या पदार्थ में निहित विशेषताओं का आंकिक वर्णन किया जाता है।
परीक्षा तथा परीक्षण आकलन/मूल्यांकन का एक उपकरण/पद्धति है जिसके द्वारा परीक्षा/परीक्षण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा मुख्य रूप से पाठयक्रम के ज्ञानात्मक अनुभव कौशल की जांच की जाती है।
उददेश्य

इसका उददेश्य निदानात्मक होता  है। शैक्षिक संदर्भ में आकलन का उददेश्य शिक्षण- अधिगम कार्यक्रम में सुधार करना, छात्रों व अध्यापक को पृष्ठपोषण प्रदान करना तथा छात्रों की अधिगम संबंधी कठिनाइयों को ज्ञात करना होता है।
इसका उददेश्य मूल्य निर्णयन करना होता है। शैक्षिक संदर्भ में मूल्यांकन का उददेश्य निर्धारित पाठयक्रम की समाप्ति पर छात्रों की उपलब्धि को ग्रेड अथवा अंक के माध्यम से प्रदर्शित करना है।
मापन आकलन तथा मूल्यांकन की एक तकनीक है।
परीक्षा द्वारा मुख्य रूप से पाठयक्रम के ज्ञानात्मक अनुभव कौशल की जांच की जाती है। परीक्षा तथा परीक्षण मूल्यांकन का एक उपकरण/पद्धति है। छात्र के ज्ञान, क्षमता, कौशल, रूचि आदि की जांच की जाती है।
अवधि

यह सम्पूर्ण अकादमिक अवधि के दौरान निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है।
यह पाठयक्रम की समाप्ति पर होने वाली प्रक्रिया है।
यह कभी भी या कभी-कभी चलने वाली प्रणाली है।
यह एक निश्चित समय के अन्तराल पर अपनाया जाने वाला उपकरण है जैसे कि मासिक, अर्धवार्षिक एवं वार्षिक आदि।
शिक्षण-शास्त्रीय

शिक्षण शास्त्र का हिस्सा है, जो पढ़ने-पढाने के साथ-साथ चलता है।
शिक्षण शास्त्र का हिस्सा है, जो पढ़ने-पढाने के अंत में  उपलब्धियों के वर्गीकरण के लिए किया जाता रहा है।
मापन मुख्य तौर पर व्यकितत्व के विभिन्न पहलुओं जैसे- मानसिक क्षमता, रूझान इत्यादि के लिए किया जाता रहा है।
पारंपरिक रूप से यह शिक्षण शास्त्र में स्मृति आधारित ज्ञान के लिए होता है तथा शिक्षणेत्तर गतिवधियों के लिए भी होता है।

Saturday 30 November 2013

Skills and Competencies

The terms "skills" and "competencies" are often used interchangeably, but they are not necessarily synonymous. Competencies may refer to sets of skills, but "competency" is more of an umbrella term that also includes behaviors and knowledge, whereas skills are specific learned activities that may be part of a broader context. 
By looking at several examples of both competencies and skills, the difference may become clearer.

Competency: Problem Solving
Problem solving is a competency that requires several skills, knowledge and behaviors to be performed well. For example, to solve problems effectively one must have the skill to define the problem, have knowledge of all possible solutions, and exhibit behavior that enables him or her to make a decision.

Skill: Event Planning
Event planning is a skill that can be taught to anyone with the ability to learn it. Several steps may be considered when planning an event, and different tasks must be completed for different kinds of events. All of these things are hard skills, but may be part of an overall competency like leadership or problem solving.

Competency: Communication
Many people refer to their strong communication skills, but communication is really a competency that relies on a combination of certain skills, behavior and knowledge. To communicate effectively, for example, a person may need to understand cultural diversity, have advanced language skills, and behave with patience.

Skill: Presentations
Through reading books, taking classes and practicing, it is possible to learn how to give effective presentations. Presentation skills are more easily absorbed by some people than by others, but a presentation is still a task one can learn how to perform. Presentation skills may be part of a larger competency such as communication.

- Posted as comment by 
Ms. Vandana Mishra,
 Technical Associate, CARE India
on 26 November 2013 01:50

Thursday 28 November 2013

CCE की ट्रेनिंग में प्रतिभाग

जनपद रायबरेली में CCE की ट्रेनिंग के सिलसिले में मेरी विजिट का आज तीसरा दिन था. इसके पहले मैं वाराणसी में भी CCE की ट्रेनिंग देख चुका हूँ. एक कॉमन ऑब्जरवेशन मेरा यह रहा है कि पुरुष शिक्षकों की तुलना में महिला शिक्षकों की रूचि और भागीदारी कहीं ज्यादा दिख रही है. चाहे ट्रेनिंग के दौरान बड़े समूह में चर्चा हो रही हो या फिर छोटे समूह में, किसी गतिविधि में प्रतिभाग का सवाल हो, या फिर किसी प्रश्न का उत्तर देना हो. इन सबमें महिला शिक्षक बढ़-चढ़ कर प्रतिभाग कर रही हैं. वहीँ सक्रिय प्रतिभाग करने वाले पुरुष शिक्षकों की संख्या कम है.


आखिर ऐसा क्यों है?

Sunday 24 November 2013

गणित की एक कक्षा

गणित की एक कक्षा का दृश्य

कक्षा: 5                विषय: गणित              पाठ: 8                  लाभ-हानि
उददेश्य : दैनिक जीवन में गणितीय अवधारणाओ की समझ पैदा करना, तार्किक क्षमता का विकास करना।
कक्षा कक्ष में पहुंचने के पर शिक्षक ने सभी को नमस्ते बोला।
सभी बच्चों ने भी एक साथ कहा - नमस्ते सर।
तभी एक छा़त्रा सीमा बोली- सर जी, आज हम लोग क्या पढ़ेगे?
शिक्षक: (छात्रा की पहल को देखते हुए) सीमा! क्या तुमको पता है हम क्या पढ़ने वाले है?
सीमा: हा सर जी, शायद हमलोग लाभ, हानि के बारे में पढ़ेंगे।
रमजान: (सीमा की बात काटते हुए) सर जी, ये दुकान पर सामान बेचती है इसलिये ये लाभ-हानि के बारे में ही हमेशा बोलती है। (सभी बच्चे हंसने लगे, तभी मालती बोली)
मालती: गलत........सीमा सामान नहीं बेचती है, उसके पापा बेचते हैं।
शिक्षक: बहुत अच्छा, तब तो तुम लोगो को सामान लाने शहर नहीं जाना पड़ता होगा। (तभी किस्मत अली बोला)
किस्मत अली: सर जी इनके पापा बहुत महंगा सामान देते हैं। (सीमा तेजी से बोली)
सीमा: बाजार से लाते है तो मेहनताना तो लेंगे ही।
शिक्षक: सीमा तुम्हारे पापा कौन-कौन सा सामान दुकान पर बेचते हैं। (बबली बीच में टोकती हुर्इ बोली)
बबली: सर जी हम बतायें........?
शिक्षक: वाह, कमाल हो गया, दुकान सीमा के पापा की और सामान तुम्हें पता है, ठीक है बताओ।
बबली: आलू, प्याज, बिसिकट, दालमोठ....
रानी: माचिस, नमक, .........
रिंकू: दाल, चावल, आटा,
(बच्चे उत्साहित होकर सामान का नाम गिनाने लगते है शिक्षक उन्हें श्यामपटट पर लिखता है)
शिक्षक: ठीक है, ये बताओ सीमा, तुम्हारे पापा एक पैकेट बिसिकट कितने का बेचते है!
सीमा: 06 रूपये का ।
शिक्षक: और खरीदते कितने का है?
सीमा: 5 रूपये का ।
रिंकू: सर जी एक रू0 का नफा लेते है।
शिक्षक: अच्छा कोर्इ ऐसा है जिसने कापी भी खरीदी हो सीमा के पापा की दुकान से। कर्इ बच्चे एक साथ बोलने लगे.......कापी, पेन, आलू, (कुछ बच्चे मजा लेने के लिये उत्साही होकर और चीजो का नाम बताते हैं।)
शिक्षक: अच्छा यह बताओ, एक किलो आलू यहा कितने का मिलता है?
सीमा: (तपाक से बोली) हमारे पापा 12 रू0 किलो देते है। (तभी मालती बात काटते हुये बोली)
मालती: सर इनके पापा बलरामपुर से आलू 10 रू0 किलो लाते हैं और यहा 12 रू0 किलो बेचते हैंं। एक किलो पर 2 रू0 का नफा लेते है। (शिक्षक श्यामपटट पर लिखता है)
                सीमा के पापा गांव में आलू बेचते हैं 12 रू0 किलो
                सीमा के पापा बलरामपुर से आलू खरीदते है 10 रू0 किलो
शिक्षक: अच्छा जैसे मालती ने कहा कि सीमा के पापा को 2 रू0 का नफा हुआ तो इनको यह कैसे पता चला........?
      (बच्चे थोडी देर के लिये चुप रहें, और एक दूसरे से बातचीत करने लगे। कुछ देर बाद बोले)
रमजान: सर जी जितने में खरीदा है वह मूल्य जितने मे बेचा है उसमें से घटा कर  बताया। (सभी बच्चे रमजान की हा में हा मिलाने लगे)
शिक्षक: बहुत अच्छा, तब जो दो 2 रू0 का नफा हुआ उसको लाभ कहते हैं। अच्छा यह बताओ कि कभी 6 रू0 वाला बिसिकट 4 रू0 में भी बेचा है सीमा ........तुम्हारे पापा ने?
सीमा: हा जब बिसिकट टूट जाता है, तब.......
शिक्षक: तब कितने का नफा होता है?
बबली: (हंसते हुए) सर जी तब नफा होगा कि घाटा........!
शिक्षक: क्यों नफा नहीं होगा।
मालती: सर जी, वो बिसिकट 5 रू0 में खरीदा था तब टूट गया तो 4 रू0 में बेच दिया तो एक रू0 का घाटा हुआ
(श्यामपटट में शिक्षक ने लिखा)
                बिसिकट खरीदा- 5 रू0 में
                बिसिकट बेचा- 4 रू0 में
शिक्षक: यह तुमको कैसे पता चला?
मालती: सर जी, जितने रू0 में खरीदा था उसमें से जितने रू0 में बेचा घटा दीजिए। बस पता चल जायेगा।
शिक्षक: जो एक रू0 का घाटा हुआ उसी को हानि कहते है।
                जब बेचा गया मूल्य खरीदे गये मूल्य से अधिक होता है, तो लाभ होता है।''
                जब बेचा गया मूल्य खरीदे गये मूल्य से कम होता है, तो हानि होता है।''
शिक्षक: अच्छा बताओ........खरीदे गये मूल्य को और क्या कहते है?
                (बच्चे चुप रहते है आपस में बातचीत करने लगते हैं)
शिवकुमारी: (कुछ सोचते हुए) या तो क्रय मूल्य या विक्रय मूल्य में से कोर्इ एक है।
शिक्षक: ठीक कहा:
                खरीदे गये मूल्य को क्रय मूल्य कहते हैं।
                बेचे गये मूल्य को विक्रय मूल्य कहते हैं।
                (इस पर बच्चे आपस में बातचीत करने लगते हैं)
शिक्षक ने कक्षा के वातावरण को सरल बनाते हुए कक्षा कक्ष में बातचीत का मौका का माहौल तैयार किया, जिसमें बच्चे पूरी तरह सहज दिखें।

कक्षा-कक्ष की प्रकि्रया के दौरान (आंकलन के नजरिये से) शिक्षक ने देखा कि:
•             बच्चे बातचीत करते समय सहज और उत्साह से अपनी बात कहने को उत्सुक दिखे।
•             बातचीत के दौरान बच्चे आनन्द का अनुभव करते दिखायी दिये।
•             सीमा अपने पापा की दुकानदारी की बात करते हुए बहुत उत्साही दिखार्इ दी।
•             मालती बातचीत के दौरान ही यह बता ले रही है कि सीमा के पापा के कितनी लाभ और हानि हो रही है।
•             रमजान भी लाभ हानि को बता पा रहा है।
•             रिंकू, मिंटू, रानी, सिराज क्षेत्रीय भाषा में बात करने में ज्यादा सहज दिख रहे हैं।
सबसे अच्छी बात यह दिखी कि बच्चों को सामानों की खरीदारी और बेचने तथा उससे होने वाले लाभ व हानि के बारे में इतने उत्साही होकर बात कर रहें है कि उन्हे लगा ही नही कि कक्षा शिक्षण हो रहा है।
संकेतक: बच्चे लाभ-हानि क्रय-विक्रय मूल्य को बता रहे हैं।

Shared by : महमूदुल हक
00, पू0मा0वि0 मुजेहनी,

बलरामपुर।

Friday 22 November 2013

सतत एवं व्यापक मूल्यांकन क्यों?

हम सतत एवं व्यापक मूल्यांकन क्यों करें? क्या बिना रिकार्डिंग के सतत एवं व्यापक मूल्यांकन नहीं हो सकता है?

यह यक्ष प्रश्न मेरे सामने उस वक्त आया जब मैं बाबा भोले की नगरी काशी में सतत एवं व्यापक मूल्यांकन के अंतर्गत शिक्षक प्रशिक्षण के अवलोकन एवं अनुसमर्थन प्रदान करने के सिलसिले में एक विकास खंड में शिक्षकों से रूबरू हो रहा था।

प्रशिक्षण शुरू हुये तीन दिन बीत चुके थे और यह चौथा दिन था। पूर्व की भांति ही मैं शिक्षकों से यह समझने का प्रयास कर रहा था कि गत दो दिवसों में क्या कुछ हो चुका है। इसी बातचीत के क्रम में मैं यह आकलन कर रहा था कि उक्त प्रशिक्षण के महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं पर प्रतिभागी शिक्षकों की समझ कितनी बनी है, और मुझे किन बिन्दुओं पर बात को आगे बढ़ानी चाहिये।

उक्त शिक्षक महोदय बिना कुछ प्रतिक्रिया दिये हमारी वार्ता सुन रहे थे। वार्ता के क्रम में अन्य शिक्षक साथियों जिनमें शिक्षिकाओं की संख्या अधिक थी, ने कर्इ प्रश्न किये जिनका मैंने अपनी समझ से उत्तर देने की कोशिश की। मुख्यत: संकेतक और रिकार्डिंग पर ही अधिक प्रश्न थे।

जब वार्ता अपनी आखिरी पड़ाव की ओर थी और मैं मानसिक रूप से अगले विकास खंड की तरफ बढ़ने को अपने को कह रहा था, उसी समय वे शिक्षक महोदय उठे और अपनी अंदर चल रहे झंझावातों से मुझे झकझोरने के अंदाज में बोले - "यह बताइए कि आखिर हम सतत एवं व्यापक मूल्यांकन क्यों करें? क्या पहले हम बच्चों का मूल्यांकन नहीं करते थे? क्या पहले बच्चे नहीं सीखते थे? फिर हमारे ऊपर इतना बोझ क्यों थोपा जा रहा है?"

अपनी बात कहने के बाद कक्ष में चारों ओर निगाह दौड़ाकर अन्य शिक्षकों पर इसका प्रभाव देखने की कोशिश करते हुए मानो वे यह कहना चाह रहे हों कि देखा आपने, मुख्य प्रश्न तो मैंने पूछा है। आप लोग तो अभी तक बस इधर-उधर की ही बातें कर रहे थे।

सतत एवं व्यापक मूल्यांकन से मास्टर साब को आशय रिकार्डिंग से था। अभी भी हमारे कर्इ शिक्षक साथी रिकार्डिंग को ही सतत एवं व्यापक मूल्यांकन का पर्याय समझते हैं। यह धारणा हमारे सामने बहुत बड़ी चुनौती है। 

ख़ैर, मास्टर साब के प्रश्न पूछने के बाद भी मैं अपनी स्वाभाविक मुस्कान बनाए रखने की कोशिश में सफल रहा, हालांकि अंदर कुछ उफान सा उठता हुआ मैंने महसूस किया। मैंने मास्टर साब से कहा - "सर, आज ट्रेनिंग का तीसरा दिन है, और मेरे ख्याल से पहले दिन ही इस प्रश्न पर चर्चा हुर्इ होगी।"

"नहीं सर, आप बताइए। हम अभी तक इसे समझ नहीं पाये हैं।" मास्टर साब ने प्रतिरोध के स्वर में अपनी बात को पुन: लगभग दुहरा सा दिया।

मैंने इस प्रश्न को सदन में सभी के सामने रखते हुये कहा - "क्या आप में से कोर्इ शिक्षक साथी मास्टर साब की इस शंका का समाधान करना चाहेंगे?"

पहले तो प्रतिक्रिया शून्य रही। मैं इस प्रश्न का उत्तर शिक्षक साथियों से ही चाह रहा था। अत: मैंने अपनी बात को पुन: दूसरे शब्दों में रखा - "अभी जब आपसे बात हो रही थी, तब आपने इस प्रश्न का उत्तर दिया था। बहुत ही अच्छे तरीके से आपने सतत एवं व्यापक मूल्यांकन का क्या अर्थ है, इसका महत्त्व क्या है और रिकार्डिंग करने के क्या फायदे हैं, इस पर अपनी बातों को रखा था। बताइए!"

एक मैडम जी उठीं। मुझे ऐसा लगा कि उन्हें इस सिस्टम में आये दो-तीन वर्षों से ज्यादा नहीं हुआ होगा। बड़े ही सरल शब्दों में उन्होंने कहा - "सर, वैसे तो यह ठीक है कि बच्चों को पढ़ाने के लिए हमारे मन में कुछ प्लानिंग होती है, लेकिन जब हम इसे लिखते हैं, तो हमें गंभीरता के साथ सोचना पड़ता है। इससे हमारी प्लानिंग और बढि़या होती है। उसी प्रकार कक्षा की समापित के बाद पुन: जब हमें अपनी टिप्पणी दर्ज करनी होती है, तो हम एक बार फिर से सोचने के लिए बाध्य हो जाते हैं। अगर हम न लिखें, तो निशिचत रूप से हम इस प्रकार से सोचकर काम नहीं करते हैं। इस प्रकार रिकार्डिंग करने से शिक्षक अपने काम को गंभीरता से और बेहतर ढंग से करने लगता है। एक बात और, लिखने से यह अभिलेख के रूप में हमारे पास होता है जिसका उपयोग हम भविष्य में कर सकते हैं, अन्यथा न लिखने की दशा में हम तो भूल जाएंगे।"

इस प्रकार बहुत ही सटीक भाषा में सतत एवं व्यापक मूल्यांकन एवं रिकार्डिंग के महत्त्व और उपयोगिता को पूरे सदन के सामने रखने के लिए मैंने मैडम को ह्रदय से धन्यवाद दिया। कुछ ओर शिक्षकों ने भी मैडम की बात का समर्थन किया।

मैंने फिर मास्टर साब से पूछा - "सर, क्या अब भी मेरी तरफ से कुछ कहने की आवश्यकता है?"

मास्टर साब शांत थे।

इस चर्चा को समाप्त करते हुए मैंने बस इतना और जोड़ा - "हमें इस बात पर ग़ौर करने की ज़रूरत है कि आखिर हमें अपना काम ही बोझ क्यों लगने लगता है? हम सभी अपने विधालय के बच्चों को एक बेहतर भविष्य देना चाहते हैं, और उसी लक्ष्य को लेकर हम सभी अपने तरीके से बच्चों को सीखने में मदद करते हैं। सतत एवं व्यापक मूल्यांकन की यह पूरी प्रक्रिया हमें अपने ही काम को और बेहतर ढंग से करने में हमारी मदद करती है। जिस दिन हम इस रूप में इसे समझेंगे, यह हमें बोझ नहीं लगेगी। यह हमारी शिक्षण प्रक्रिया का एक अंतरंग, अभिन्न एवं अक्षुण्ण हिस्सा बन जाएगी।"

आपके क्या विचार हैं? ज़रूर लिखयेगा!
- महेंद्र