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Friday, 22 November 2013

सतत एवं व्यापक मूल्यांकन क्यों?

हम सतत एवं व्यापक मूल्यांकन क्यों करें? क्या बिना रिकार्डिंग के सतत एवं व्यापक मूल्यांकन नहीं हो सकता है?

यह यक्ष प्रश्न मेरे सामने उस वक्त आया जब मैं बाबा भोले की नगरी काशी में सतत एवं व्यापक मूल्यांकन के अंतर्गत शिक्षक प्रशिक्षण के अवलोकन एवं अनुसमर्थन प्रदान करने के सिलसिले में एक विकास खंड में शिक्षकों से रूबरू हो रहा था।

प्रशिक्षण शुरू हुये तीन दिन बीत चुके थे और यह चौथा दिन था। पूर्व की भांति ही मैं शिक्षकों से यह समझने का प्रयास कर रहा था कि गत दो दिवसों में क्या कुछ हो चुका है। इसी बातचीत के क्रम में मैं यह आकलन कर रहा था कि उक्त प्रशिक्षण के महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं पर प्रतिभागी शिक्षकों की समझ कितनी बनी है, और मुझे किन बिन्दुओं पर बात को आगे बढ़ानी चाहिये।

उक्त शिक्षक महोदय बिना कुछ प्रतिक्रिया दिये हमारी वार्ता सुन रहे थे। वार्ता के क्रम में अन्य शिक्षक साथियों जिनमें शिक्षिकाओं की संख्या अधिक थी, ने कर्इ प्रश्न किये जिनका मैंने अपनी समझ से उत्तर देने की कोशिश की। मुख्यत: संकेतक और रिकार्डिंग पर ही अधिक प्रश्न थे।

जब वार्ता अपनी आखिरी पड़ाव की ओर थी और मैं मानसिक रूप से अगले विकास खंड की तरफ बढ़ने को अपने को कह रहा था, उसी समय वे शिक्षक महोदय उठे और अपनी अंदर चल रहे झंझावातों से मुझे झकझोरने के अंदाज में बोले - "यह बताइए कि आखिर हम सतत एवं व्यापक मूल्यांकन क्यों करें? क्या पहले हम बच्चों का मूल्यांकन नहीं करते थे? क्या पहले बच्चे नहीं सीखते थे? फिर हमारे ऊपर इतना बोझ क्यों थोपा जा रहा है?"

अपनी बात कहने के बाद कक्ष में चारों ओर निगाह दौड़ाकर अन्य शिक्षकों पर इसका प्रभाव देखने की कोशिश करते हुए मानो वे यह कहना चाह रहे हों कि देखा आपने, मुख्य प्रश्न तो मैंने पूछा है। आप लोग तो अभी तक बस इधर-उधर की ही बातें कर रहे थे।

सतत एवं व्यापक मूल्यांकन से मास्टर साब को आशय रिकार्डिंग से था। अभी भी हमारे कर्इ शिक्षक साथी रिकार्डिंग को ही सतत एवं व्यापक मूल्यांकन का पर्याय समझते हैं। यह धारणा हमारे सामने बहुत बड़ी चुनौती है। 

ख़ैर, मास्टर साब के प्रश्न पूछने के बाद भी मैं अपनी स्वाभाविक मुस्कान बनाए रखने की कोशिश में सफल रहा, हालांकि अंदर कुछ उफान सा उठता हुआ मैंने महसूस किया। मैंने मास्टर साब से कहा - "सर, आज ट्रेनिंग का तीसरा दिन है, और मेरे ख्याल से पहले दिन ही इस प्रश्न पर चर्चा हुर्इ होगी।"

"नहीं सर, आप बताइए। हम अभी तक इसे समझ नहीं पाये हैं।" मास्टर साब ने प्रतिरोध के स्वर में अपनी बात को पुन: लगभग दुहरा सा दिया।

मैंने इस प्रश्न को सदन में सभी के सामने रखते हुये कहा - "क्या आप में से कोर्इ शिक्षक साथी मास्टर साब की इस शंका का समाधान करना चाहेंगे?"

पहले तो प्रतिक्रिया शून्य रही। मैं इस प्रश्न का उत्तर शिक्षक साथियों से ही चाह रहा था। अत: मैंने अपनी बात को पुन: दूसरे शब्दों में रखा - "अभी जब आपसे बात हो रही थी, तब आपने इस प्रश्न का उत्तर दिया था। बहुत ही अच्छे तरीके से आपने सतत एवं व्यापक मूल्यांकन का क्या अर्थ है, इसका महत्त्व क्या है और रिकार्डिंग करने के क्या फायदे हैं, इस पर अपनी बातों को रखा था। बताइए!"

एक मैडम जी उठीं। मुझे ऐसा लगा कि उन्हें इस सिस्टम में आये दो-तीन वर्षों से ज्यादा नहीं हुआ होगा। बड़े ही सरल शब्दों में उन्होंने कहा - "सर, वैसे तो यह ठीक है कि बच्चों को पढ़ाने के लिए हमारे मन में कुछ प्लानिंग होती है, लेकिन जब हम इसे लिखते हैं, तो हमें गंभीरता के साथ सोचना पड़ता है। इससे हमारी प्लानिंग और बढि़या होती है। उसी प्रकार कक्षा की समापित के बाद पुन: जब हमें अपनी टिप्पणी दर्ज करनी होती है, तो हम एक बार फिर से सोचने के लिए बाध्य हो जाते हैं। अगर हम न लिखें, तो निशिचत रूप से हम इस प्रकार से सोचकर काम नहीं करते हैं। इस प्रकार रिकार्डिंग करने से शिक्षक अपने काम को गंभीरता से और बेहतर ढंग से करने लगता है। एक बात और, लिखने से यह अभिलेख के रूप में हमारे पास होता है जिसका उपयोग हम भविष्य में कर सकते हैं, अन्यथा न लिखने की दशा में हम तो भूल जाएंगे।"

इस प्रकार बहुत ही सटीक भाषा में सतत एवं व्यापक मूल्यांकन एवं रिकार्डिंग के महत्त्व और उपयोगिता को पूरे सदन के सामने रखने के लिए मैंने मैडम को ह्रदय से धन्यवाद दिया। कुछ ओर शिक्षकों ने भी मैडम की बात का समर्थन किया।

मैंने फिर मास्टर साब से पूछा - "सर, क्या अब भी मेरी तरफ से कुछ कहने की आवश्यकता है?"

मास्टर साब शांत थे।

इस चर्चा को समाप्त करते हुए मैंने बस इतना और जोड़ा - "हमें इस बात पर ग़ौर करने की ज़रूरत है कि आखिर हमें अपना काम ही बोझ क्यों लगने लगता है? हम सभी अपने विधालय के बच्चों को एक बेहतर भविष्य देना चाहते हैं, और उसी लक्ष्य को लेकर हम सभी अपने तरीके से बच्चों को सीखने में मदद करते हैं। सतत एवं व्यापक मूल्यांकन की यह पूरी प्रक्रिया हमें अपने ही काम को और बेहतर ढंग से करने में हमारी मदद करती है। जिस दिन हम इस रूप में इसे समझेंगे, यह हमें बोझ नहीं लगेगी। यह हमारी शिक्षण प्रक्रिया का एक अंतरंग, अभिन्न एवं अक्षुण्ण हिस्सा बन जाएगी।"

आपके क्या विचार हैं? ज़रूर लिखयेगा!
- महेंद्र

14 comments:

  1. One cannot see CCE and teaching learning process as two separate entity. The problem arises when we see these two things in two different framework and hence take it as a burden. Teacher correctly said that we were assessing the students earlier also but at that time also assessment was part of teaching learning process.... and not a separate entity....

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    1. Absolutely right sir... We need to have a holistic picture of the teaching-learning process of which CCE is an integral aspect.

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  2. actually problem begins when we think that cce and teaching are two different things.when as a teacher we starts continuous and comprehensive teaching it means that we are involving in cce also....

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    1. Thanks sir for sharing your views... Kindly keep enriching us on regular basis..

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  3. jo daud lagakar baith gaye, o raho mein rah jate hain.
    jo lagatar chalte rahte nishchaya hi manjil pate hain,
    bachchon ki bahumukhi pratibha ka jo behtar mapak hota hai,
    vahi doosre shabdon mein,mulyankan vyapak hota hai.

    ...Vindhyeshvari Prasad 'Vindhya'
    ABRC Pindra Varanasi
    Mo..9415724310

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    1. Bahut khoob sir... यदि संभव हो तो आप हिंदी में लिख कर भेजो सर, मेरा रिक्वेस्ट है आप CCE पर एक व्यापक कविता लिखो... ट्रेनिंग के अपने अनुभवों को भी लिखिए...
      धन्यवाद सर...

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  4. लेकिन अफ़सोस सर के हमारे कुछ साथी इस बात को समर्थन तो करते हैं पर इसे कार्य रूप में परिणत करने को राजी नहीं होते..
    तमाम बहाने होते हैं उनके पास.
    आज जब मैंने उनसे इस विषय के सन्दर्भ में बात की तो उन्हें विभागीय काम याद आये, सरकारी व्यवस्थागत कमियां नज़र आयीं और विद्यालय में अध्यापकों की कमी का एहसास हुआ...साथ ही अन्य कई और परेशानियाँ गिनाई गयी.
    लेकिन सोचना ये है के ये तो हमें मालूम है के हमारे पास संसाधनों की कमी है पर हम सिमित संसाधनों के साथ क्या बेहतरीन कर सकते हैं. अपने उद्देश्य को कितना प्राप्त कर पाते हैं. और कितनी सफलता से अपने कर्त्तव्य का निर्वहन कर सकते हैं.
    आपकी कहानी में मैडम की सोच सराहनीय है और ठीक है. यदि हम प्लानिंग को लिखित रूप देते हैं तो हमें एक फायदा ये और होता है के प्लानिंग के किसी भी हिस्से को आवश्यकतानुसार कभी भी बदल भी सकते हैं जो प्रभावी शिक्षण में सहयोगी होगा.
    धन्यवाद.

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    1. बिलकुल सही कहा आपने... ज़रूरत है सकारात्मक सोच की. काम तो करना ही है. अगर सकारात्मक सोच के साथ काम करते हैं, तो परिणाम निश्चित ही उत्साहवर्धक होंगे, और काम करने का आनंद भी अनुभव होने लगता है.

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  5. Sir mera ek seedha sa sawal kai training me raha hai ki aam taur per hum (teacher) kahta hai ki main akela hoon aaj bahut jyada bachche aa gaye kaise padhayen, doosre din nazara badla bachche kam aaye to kya kahta hai ........aaj bahut kam bachche aaye hain kya padhaein.........to akhir ab aap hi (wo teacher) bata do ki kis din kitne bachchon ke aane per padhaoge.

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  6. aaj teaching ke baad jab main dress distribution ki list maintain karne baitha likhte likhte achanak ink khatam ho gaya , us waqt mere pas black color ka koi dusra pen nahi tha, main apne aap me hi pen ko dono umgli me fansa kar hilate hue soch raha tha ki kya kiya jaye , kisse pen manga jaye ki tabhi ek aisi ghatna ghati ki main sochne pe majboor ho gaya .............ek ladka class 3 ka apne black pen laakar mujhe apne aap hi de gaya..hai na sochne wali baat.us bachchey ko aisa kya mehsoos hua ki usne aisa kiya.

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    1. अद्भुत... ये तो मानसिक विचारों को पढने जैसी बात हो गयी... अच्छा हो यदि आप उस बच्चे का लगातार अवलोकन करें और अपने अनुभव लिखते रहे. बहुत संभव है कि कुछ अलग ही अनुभव निकल कर आये....

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  7. मुझे अपने जनपद वाराणसी में सी. सी. र्इ. प्रशिक्षण के अनुश्रवण का अवसर प्राप्त हुआ। प्रारम्भ में एक विकास क्षेत्र में गया तो वहा मास्टर ट्रेनर महोदय सें एक प्रतिभागी शिक्षक पूछ रहे थे कि आखिर हम सी.सी. र्इ. क्यों करें, खासकर रिकार्डिंग क्यों करें जब हमें अपने प्रत्येक बच्चे के बारे में पता होता ही है। ट्रेनर महोदय अपने तर्को द्वारा समझाने का प्रयास कर रहे थे, परन्तु प्रतिभागी शिक्षक संतुष्ट नहीं थे। वे लगातार प्रश्न कर रहे थे, मानो वे तय करके आये थे कि आज तो प्रश्नों की बौछार करनी हो। कुछ समय पश्चात मैं भी प्रतिभागियों को समझाने का प्रयास किया वे शान्त तो हो गये, परन्तु उनका हाव-भाव कह रहा था कि वे यह मानने के लिये तैयार नहीं थे कि बच्चों के साथ-साथ वास्तव में उनकी शिक्षण प्रक्रिया का भी मूल्यांकन होता है।

    मैं इस घटना की चर्चा इसलिये कर रहा हू कि पाच-छ़: दिनों बाद हम लोग अनुश्रवण करने के लियें एक अन्य विकास क्षेत्र में गये साथ में एस. एस.ए. लखनऊ से सलाहकार महेन्द्र जी भी थे। उस विकास क्षेत्र में भी एक शिक्षक ने चर्चा के उपरांत यही प्रश्न किया कि हम सी.सी.र्इ. क्यों करें ? यहां भी आशय मुख्य रूप से रिकार्डिंग करने के संबंध में ही था। महेन्द्र जी ने इस प्रश्न का उत्तर स्वयं न देकर प्रतिभागियों से ही पूछा कि आप में से कोर्इ बतायें क्यों करें ?

    प्रतिभागियों में से ही एक मैडम जी ने इसका उत्तर देते हुए कहा था कि सर जब हम अपनी योजना या फिर बच्चों की प्रगति लिखते हैं तो हमें गंभीरता के साथ सोचना पड़ता है। इससे हमारी प्लानिंग और बढि़या होती है। उसी प्रकार कक्षा की समापित के बाद पुन जब हमें अपनी टिप्पणी दर्ज करनी होती है तो हम एक बार फिर से सोचने के लिए बाध्य हो जाते हैं। अगर हम न लिखें तो निशिचत रूप से हम इस प्रकार से सोचकर काम नहीं करते हैं। इस प्रकार रिकार्डिंग करने से शिक्षक अपने काम को गंभीरता से और बेहतर ढंग से करने लगता है। एक बात और लिखने से यह अभिलेख के रूप में हमारे पास होता है जिसका उपयोग हम भविष्य में कर सकते हैं अन्यथा न लिखने की दशा में हम तो भूल जाएंगे।

    प्रतिभागी के इस उत्तर ने हम लोगों को तो काफी प्रभावित किया ही, प्रश्न कर रहे प्रतिभागियों को भी संतुष्ट किया। इस प्रश्न का उत्तर महेन्द्र जी या फिर हम दे सकते थे, परन्तु उन्होंने इसका उत्तर प्रतिभागियों से ही पूछा, और जैसे ही उस मैडम ने सकारात्मक उत्तर दिया वैसे ही प्रश्न पूछने वाले अघ्यापक महोदय तथा उनके कुछ साथी ,जो केवल प्रश्न पूछना अपना एकाधिकार समझते है, बगले झांकने लगें।

    वास्तव में बहुत से अध्यापक-अध्यापिका हैं, जो बच्चों के साथ,बच्चों के अनुसार कार्य करने तथा उस कार्य का आत्म- मूल्यांकन करनें की सकारात्मक सोच रखते हैं। यदि हम सभी अध्यापक इस तरह का सकारात्मक सोंच रखें तब शायद यह प्रश्न ही नही आयेंगा कि हम सी.सी.र्इ.क्यों करें । एक और बात जो मैं यहां कहना चाहूंगा कि अच्छे शिक्षकों को सी.सी.ई. करना नहीं पड़ता है, उनसे यह हो ही जाता है क्योंकि उन्हें यह पता है कि इसके बिना सार्थक शिक्षण हो ही नहीं सकता। यह उनकी शिक्षण पद्धति का अभिन्न हिस्सा है। और यह देखकर अच्छा लगता है कि ऐसे शिक्षक इस

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  8. Hi, Mohinder
    I am not in teaching field now. I felt that I am not a good teacher, so I take a break from my 10 years teaching carrier .But I am trying to be a good Teacher so m reading all your blogs to improve myself.Thanx a lot for all this.

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