यह हमारी एक स्वाभाविक
प्रवृत्ति होती है कि किसी भी नए प्रत्यय या शब्दावली की हम परिभाषा ढूंढ़ने की
कोशिश करने लगते हैं। कुछ शब्द ऐसे होते हैं जिनकी कोर्इ निर्धारित परिभाषा नहीं
होती है। वे अपने गुणों व विशेषताओं से पहचाने जाते हैं। जैसे, शिक्षा की परिभाषा
क्या होगी? या फिर सत्य को
आप कैसे परिभाषित करेंगे?
ऐसे शब्दों की
कोर्इ निशिचत परिभाषा नहीं होती है। इनके गुणों की वजह से ही इनकी पहचान होती है।
साथ ही ये तुलनात्मक होते हैं। शिक्षा या सत्य की परिभाषा व्यक्ति विशेष पर निर्भर
होती है तथा यह उनके लिए अलग-अलग हो सकती है।
संकेतक एक ऐसा ही शब्द
है। आइए, हम इसकी बुनियादी
समझ बनाने की कोशिश करते हैं। अब तक हम दक्षता के आधार पर बच्चों के अधिगम स्तर का
निर्धारण करते रहे हैं जिसे Minimum Level of Learning कहते हैं। ये दक्षताएं एक पाठयक्रम के माध्यम से प्रदेश के
समस्त विधालयों में लागू होती हैं। इस प्रकार एक समान दक्षताओं के आधार पर ही
समस्त विधालयों में शिक्षक अपनी शिक्षण योजना बनाते हैं। प्रश्न यह है कि क्या यह
उचित है? क्या प्रदेश के
समस्त विधालयों में बच्चों के सम्प्रापित आकलन के लिए एक जैसा मानदण्ड निर्धारित
करना चाहिए? या फिर इसे तय
करने की जि़म्मेदारी व स्वतंत्रता विधालय व शिक्षक के ऊपर छोड़ देना चाहिए?
तमाम प्रयोगों व अध्ययन
के आधार पर प्राप्त निष्कर्ष यह बताते हैं कि इस प्रकार के मानदण्ड या संकेतक का
निर्माण करने की स्वतंत्रता विधालय व उसके शिक्षक के पास होनी चाहिए। शिक्षक ही वह
व्यकित होता है जो अपनी विधालय व कक्षा के बच्चों की आवश्यकता व संप्रापित से
बेहतर ढंग से अवगत होता है। संकेतक बच्चों की इसी प्रगति का आकलन करने में मदद
करता है और शिक्षक ही इसे बेहतर ढंग से बना सकता है। अत: यह लचीली होती है। हो
सकता है कि शिक्षक दो-तीन संकेतकों को मिलाकर एक संकेतक बना ले, या फिर एक संकेतक
को दो या अधिक संकेतकों में विभाजित कर अपनी शिक्षण कार्ययोजना बना सकता है।
संकेतक हमें बच्चों के
प्रगति के मानदण्ड प्रदान करते हैं। संकेतक हमें यह बताते हैं कि बच्चे ने अभी तक
कितना ज्ञान व कौशल अर्जित किया है। साथ ही संकेतक हमें यह भी बताते हैं कि बच्चे
की प्रगति की दिशा क्या है। साथ ही ये आकलन के प्रति शिक्षक व विधालय का नज़रिया
प्रस्तुत करते हैं। यह नज़रिया स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार अपने मानदण्डों के
निर्धारण को दर्शाता है।
संकेतक बच्चों की प्रगति का आकलन करने में मदद करती है. शिक्षक को सतत और व्यापक मूल्याङ्कन की अपनी आँख खुली रखनी चाहिए ताकि संकेतक का वह लगातार इस्तेमाल करते हुए शिक्षण अधिगम प्रक्रिया की प्रभाविता का लगातार मूल्याङ्कन करता रहे और उसमें आवश्यकता अनुसार परिवर्धन करता रहे. संकेतक इसे प्रभावी तरीके से अमल में लाने में शिक्षक की मदद करता है.
संकेतक पाठयक्रमीय लक्ष्यों पर आधारित होते हैं।
Very Useful Information....
ReplyDeleteI'll Share it with others...
Thanx..
काम की बात लिखी है
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