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Friday, 25 October 2013

Continuous and Comprehensive Evaluation - An Introduction


सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन

प्रत्येक बच्चे की प्रकृति एवं सीखने की गति में भिन्नता होती है तथा वे अलग-अलग विधियों से सीखते हैं। हर विषयवस्तु को सीखने-सिखाने की विधियांे में भिन्नता होने के कारण प्रत्येक बच्चे की प्रस्तुति एवं अभिव्यक्ति भी पृथक एवं विशिष्ट होती है।  अतः यह आवश्यक है कि बच्चों का मूल्यांकन कागज-कलम परीक्षा के अतिरिक्त अन्य विधाओं द्वारा भी किया जाये।

शिक्षा का अधिकार अधिनियम.-2009 (आर.टी.ई.-2009) और राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 (एन.सी.एफ -2005) में यह बार-बार कहा गया है कि बच्चे के अनुभव को महत्व मिलना चाहिए एवं उसकी गरिमा सुनिश्चित की जानी चाहिए, परन्तु यह तब तक पूर्णतया संभव नहीं है जब तक कि प्रचलित मूल्यांकन पद्धति में परिवर्तन न किया जाय। वर्तमान मूल्यांकन व्यवस्था में किसी समय बिन्दु पर लिखित परीक्षा की व्यवस्था है, जबकि छात्र का संवृद्धि एवं विकास सम्पूर्ण सत्र में विकसित होता है। साथ ही इस तरह के मूल्यांकन से कुछ बच्चों को असुरक्षा, तनाव, चिंता और अपमान जैसी स्थितियों का सामना करना पड़ता है।

वर्तमान व्यवस्था में केवल बच्चे की अकादमिक प्रगति का मूल्यांकन होता है, जबकि बच्चे के सर्वांगीण विकास में अकादमिक प्रगति के साथ-साथ उसकी अभिवृत्तियों, अभिरूचियों, जीवन-कौशलों, मूल्यों तथा मनोवृत्तियों में होने वाले परिवर्तनों का भी समान महत्व होता है। चूॅंकि प्रत्येक बच्चे की प्रकृति विशिष्ट है और शिक्षण पद्धतियाँ भी भिन्न होती हैं, अतः एक समान मूल्यांकन पद्धति उपयुक्त नहीं हो सकती है।

निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम-2009 की धारा 29 की उपधारा (2)  के अनुसार मूल्यांकन प्रक्रिया में निम्नलिखित बिन्दुओं का ध्यान रखा जाना आवश्यक हैः-

(ख) - बच्चों का सर्वांगीण विकास हो।
(घ) - पूर्णतम मात्रा तक शारीरिक और मानसिक योग्यताओं का विकास हो।
(ज) - बच्चों के समझने की शक्ति और उसे उपयोग करने की उसकी योग्यता का व्यापक और सतत् मूल्यांकन हो।

सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन क्या है?


  • सतत एवं व्यापक मूल्यांकन का आशय है कि बच्चे की प्रतिक्रिया व कक्षा की गतिविधियों में उसके प्रतिभाग की स्थिति से शिक्षक का कार्य निरन्तर निर्देशित होता रहे। 
  • बच्चों के मूल्यांकन की यह सतत एवं व्यापक प्रक्रिया कोई पृथक गतिविधि न होकर सीखने-सिखाने की प्रक्रिया का अभिन्न, सतत् और सारगर्भित अंग है। 
  • बच्चे की प्रगति के लिए आवश्यक है कि मूल्यांकन की प्रक्रिया बाल केन्द्रित हो, कक्षा में पाई जाने वाली विविधता को समझने वाली हो, आवश्यकता के अनुसार लचीली हो तथा हर बच्चे की आयु, सीखने की गति, शैली और स्तर के अनुसार चलने वाली हो। 

मूल्यांकन में सतत्ता का यहां अभिप्राय यही है कि शिक्षण-अधिगम की प्रक्रिया के साथ-साथ ही अवलोकन, कक्षा-कार्य, गृहकार्य, प्रोजेक्ट कार्य आदि के द्वारा समेकित रूप में मूल्यांकन की प्रक्रिया भी चले। व्यापक का आशय केवल अकादमिक प्रगति को देखना ही नहीं है वरन् बच्चे के नैतिक, सामाजिक, शारीरिक, भावनात्मक विकास की भी जानकारी प्राप्त करना है। शिक्षा का उद्देश्य बच्चों में पाठ्यक्रमीय दक्षताओं और कौशलों का विकास करना मात्र न होकर छात्रों का सर्वांगीण विकास करना है।


मूल्यांकन में सततता के साथ-साथ व्यापकता का तत्व समाहित किये बिना बच्चों के सर्वांगीण विकास के लक्ष्य की प्राप्ति सम्भव नहीं है। इसके लिए आवश्यक है कि बच्चों के शारीरिक विकास, अनुशासन, नियमित उपस्थिति, खेलों तथा सांस्कृतिक गतिविधियों में सहभागिता, नेतृत्व क्षमता, सृजनात्मकता आदि व्यक्तिगत एवं सामाजिक गुणों के क्रमिक विकास का सतत मूल्यांकन किया जाता रहे।

सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन क्यों आवश्यक है?
  • ‘‘सतत एवं व्यापक’’ मूल्यांकन प्रक्रिया के द्वारा शिक्षण-अधिगम के समय ही शिक्षक को छात्रों के सीखने की प्रगति और कठिनाईयों के बारे में निरन्तर जानकारी मिलती रहेगी। 
  • इस प्रकार की व्यवस्था में एक दीर्घ अन्तराल के बाद चलाए जाने वाले उपचारात्मक शिक्षण की आवश्यकता भी समाप्त हो जायेगी, क्योंकि छात्र की कठिनाई का समय रहते निदान और उपचार हो सकेगा। 
  • साथ ही यथासमय ही कठिनाइयों का निवारण होने से छात्रों में आत्मविश्वास जागृत होगा, सीखने की प्रक्रिया सुगम होगी और छात्रों के मन से परीक्षा विषयक भय और तनाव भी दूर होगा। 
  • इस क्रम में शिक्षक और छात्र के बीच जो संवाद और आत्मीयता के संबंध विकसित होंगे, उनसे छात्रों की उपस्थिति में तो वृद्धि होगी ही साथ ही साथ बीच में विद्यालय छोड़ जाने वाले ;क्तवचवनजद्ध छात्रों की संख्या में भी गिरावट आयेगी।
बिना लिखित परीक्षा के हम कैसे जानेंगे कि बच्चे ने कितना सीखा है?

सतत एवं व्यापक मूल्यांकन का अर्थ यह नहीं है कि लिखित आकलन न किया जाए। इसका मतलब है केवल वर्ष के अंत के बजाए बच्चों का लगातार मूल्यांकन करना जिसमें शिक्षक विभिन्न गतिविधियों व तरीकों का इस्तेमाल करता है। आवश्यकता होने पर लिखित आकलन भी करता है। इसमें शिक्षक यह सुनिश्चित करें कि ये सभी कार्य बिना किसी भय, दबाव व तनाव के वातावरण में हो। साथ ही परीक्षा से प्राप्त परिणाम का इस्तेमाल बच्चे में सुधार करने के लिए किया जाए न कि उसे प्रताडि़त करने के लिए।


सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन कैसे किया जाना चाहिए?

प्रत्येक बच्चा अपने आप में विशिष्ट है, तथा वह अपनी विशिष्ट शैली में सीखता है। विकास के विभिन्न क्षेत्रों में बच्चों की प्रगति की दर विभिन्न होती है। बच्चे की सीखने की प्रगति सुनिश्चित करने के लिये सर्वप्रथम आवश्यक है कि उसकी गति, रूचि और शैली के संबंध में जानकारियाँ प्राप्त की जाय। 
मूल्यांकन चक्रीय एवं क्रमिक प्रक्रिया है। इसमें विभिन्न सोपान निम्नलिखित हैं-
  • भिन्न-भिन्न स्रोतों से, तरह-तरह की विधियों के माध्यम से बच्चे के बारे में सूचनाओं और प्रमाणों का संग्रह करना।
  • प्राप्त सूचनाओं और प्रमाणों को अभिलेखों में दर्ज करना (रिकार्डिग करना)।
  • संग्रहीत सूचनाओं और प्रमाणों के आधार पर बच्चे की प्रगति के सम्बन्ध में निष्कर्ष निकालना।
  • मूल्यांकन सम्बन्धी पृष्ठपोषण बच्चों, अभिभावकों, शिक्षकों व अन्य सम्बन्धित लोगों को बताना।
  • विभिन्न अभिलेख यथा शिक्षक डायरी, छात्र संचयी प्रपत्र, छात्र प्रोफाइल आदि का उपयोग शिक्षण योजना व प्राप्त सूचनाओं को दर्ज करने में किया जाता है।
मूल्यांकन से प्राप्त फीडबैक का उपयोग शिक्षक कैसे करे?

मूल्यांकन से प्राप्त फीडबैक एक शिक्षक के लिए बच्चों के साथ काम करने के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण होता है। इसके उपयोग के लिए शिक्षक को इन बातों का ध्यान रखना चाहिए।
  • प्रत्येक बच्चे से उसके काम के बारे में बातचीत करें, कौन-कौन सा काम अच्छी तरह से किया गया है, कौन सा नहीं और कहां-कहां सुधार की आवश्यकता है।
  • बच्चे और अध्यापक दोनों मिलकर इस बात की पहचान करें कि बच्चों को किस प्रकार की सहायता की आवश्यकता है।
  • बच्चे को अपना-अपना पोर्टफोलियो देखने तथा हाल ही में किए गए कामों की तुलना पुराने काम से करने के लिए प्रोत्साहित किया जाय।
  • सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि स्वयं की तुलना अपने पिछले कार्यों की प्रगति से करें न कि दूसरों के कार्यों से। 
  • अभिभावकों के साथ चर्चा करना कि (अ) बच्चों की किस तरह से मदद कर सकते हैं, (ब) घर पर उन्होंने किस तरह का अवलोकन किया है।




11 comments:

  1. बहुत बहुत धन्यवाद सर, यह काफी अच्छा प्रयास है. मैं भी इसमें अपना अनुभव शेयर करूँगा.

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  2. Thanks al lot sir. I will share the experiences of Varanasi. It will help teachers a lot.

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    1. Thanks a lot Sir.. This blog is of and for teachers. We have to make it successful.

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  3. I will also share it with my friends and other teachers.

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    1. Great Sir... Keep going....

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    2. I really congratulate you for putting this innovative effort in creating this blog which helps us sharing our views and experiences on a common platform.

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    3. Thanks Upadhyay sir... Keep following this blog... refer this blog to your friends and other teachers too...

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  4. Thanxx a lot for helping us.

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